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भारतीय संविधान -
कुछ रिटें निकालने की न्यायालयों की शक्ति -
भारतीय संविधान के प्रमुख तीन भाग हैं ।
भाग 1 में संघ तथा राज्य के लोगों के विषय में टिप्पणी की गई है , तथा यह बताया गया है कि राज्य क्या है ? और उसके अधिकार क्या है?
भाग 2 में नागरिकता के बारे में बताया गया है , कि भारतीय नागरिक कहलाने का हक किन लोगों के पास है,और किन लोगों के पास नहीं है ,और साथ ही विदेशों में रहने वाले किन लोगों को भारतीय नागरिकता प्राप्त हो सकती है ,और कौन से लोगों को नहीं हो सकती है?
भाग 3 में भारतीय संविधान द्वारा दिए गए मौलिक अधिकारों के बारे में व्याख्या की गई है।
संवैधानिक उपचारों संबंधी अधिकार अनुच्छेद 30 से 35 तक किया गया है । मूल अधिकारों के उल्लंघन होने पर न्याय पाने के लिए उच्चतम न्यायलय में अनुच्छेद 32 के अंतर्गत और उच्च न्यायालय में अनुच्छेद 226 के अन्तर्गत याचिका दाखिल की जा सकती है ।यह अधिकार दिया गया है ।
** पांच प्रकार की याचिकाएं **
1. बंदी प्रत्यक्षीकरण -
एक ऐसे आदमी को पेश करने के लिए रिपोर्ट की जाती है जिसे हिरासत में जेल में रखा गया है, और अरेस्ट करने के 24 घंटे के अंदर उसे मजिस्ट्रेट के सामने प्रेजेंट नहीं किया गया है ,या फिर उस व्यक्ति को हिरासत में किसी अवैध तरीके से रखा गया है तो ऐसे व्यक्ति को सजा देना नहीं बल्कि उस व्यक्ति को रिहा करना होता है। अनुच्छेद 21 जो कि किसी व्यक्ति के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करने के लिए बना है। आपातकाल की घोषणा के दौरान ही निलंबित नहीं किया जा सकता है।
2. परमादेश -
यह कानूनी रूप से कार्य करने वाले या गैरकानूनी कार्य को अंजाम से बचने के लिए एक आदेश के रूप में एक न्यायिक उपाय है , इसको जारी करने का आदेश सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट देता है । जब कोर्ट के द्वारा नियम वैधानिक प्राधिकरण द्वारा सार्वजनिक किया जाता है, लेकिन उसे निभाने में असफल रहते हैं । यह नियम सुप्रीम कोर्ट, एक व्यक्ति के मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए जारी करता है जब उस व्यक्ति पर कुछ सरकारी आदेशों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया जाता है । निचली अदालतों को अपनी शक्ति के बाहर कार्य करने से रोका जाता है, कोर्ट को किसी भी मामले में तुरंत सुनवाई करने तथा उस पर कार्यवाही की सूचना उपलब्ध कराने का आदेश दिया जाता है ।
3. उत्प्रेशन -
जिसका सीधा सा अर्थ है कि सूचित करने के लिए उत्प्रेषण को एक न्यायिक आदेश के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो आचरण से संबंधित होता है और कानूनी कार्यवाही में प्रयोग किया जाता है। निगम (corporation)या ऑर्गनाइजेशन (organisation)जैसे कि संवैधानिक निकाय कंपनियों और सहकारी समितियों जैसे सहकारी समितियों तथा निजी निकाय या फिर व्यक्तियों के खिलाफ जारी करता है। अदालत द्वारा प्रमाणित और कानून के अनुसार किसी भी कार्यवाही के लिए रिकॉर्ड की जरूरत होती है । एक ऐसा क्षेत्र जहां पर उत्प्रेषण रिट जारी की जाती है l जिसमें अधिकार क्षेत्र का अभाव और न्याय क्षेत्र का दुरुपयोग और न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन किया जाता है या फिर बंद किया जाता है।
4.निषेधाज्ञा -
इसका मतलब है मना करना या फिर इसे हम स्टे आर्डर (stay order)के नाम से जानते हैं ।जब कोई निचली अदालत किसी मामले में अपने अधिकार क्षेत्र से परे होकर मामले की सुनवाई करती है तो सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट द्वारा यह रिट जारी की जाती है इसके द्वारा अधीनस्थ न्यायालय को किसी भी मामले में तुरंत कार्यवाही करने की सूचना उपलब्ध कराने का आदेश दिया जाता है ।
5.अधिकार प्रेक्षा -
इसका अर्थ है कि इस वारंट द्वारा जब कोर्ट को लगता है कि कोई व्यक्ति ऐसे पद पर नियुक्त कर दिया गया है , जिसका वह हकदार नहीं है। तब अदालत इसको जारी करती है , और उस व्यक्ति को उस पद पर कार्य करने से रोक देती है ।सविधान द्वारा यह नियम निम्न व्यक्तियों के खिलाफ जारी नहीं किया जा सकता है, इसमें एडवोकेट जनरल, विधानसभा का अध्यक्ष ,नगर निगम के तहत आने वाले सभी अधिकारी ,बोर्ड के सदस्य या फिर विद्यालय के शिक्षक को उनके पद से वंचित नहीं किया जा सकता है।
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