> '/> IPC धारा 76 क्या है ? IPC ki dhara 76 kya hai ?

IPC धारा 76 क्या है ? IPC ki dhara 76 kya hai ?

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 You are welcome once, your own website, today we will talk about IPC section 190 of the Indian penal court. What is it? It gives citizens rights to cones.

 भारतीय दण्ड संहिता 1860 -


IPC धारा 76 क्या है  IPC ki dhara 76 kya hai



धारा 76 के अनुसार -     

                   

विधि द्वारा या तथ्य की भूल के कारण अपने आप को विधि द्वारा आवद्घ होने का विश्वास करने वाले व्यक्ति द्वारा किया गया कार्य -


अगर कोई अपराध गलती से हो जाता है तो कोर्ट उसके लिए क्या सजा देती है ? आईपीसी में इसके लिए कौन सी धाराएं निर्धारित की गई है ?


कभी कभी कुछ ऐसे कार्य हो जाते हैं,  जो कि हम नहीं करना चाहते और वह अपराध की श्रेणी में भी आ जाते हैं। जिनका नतीजा यह होता है,  कि एफ आई आर दर्ज हो जाती है , और पुलिस जांच के बाद मामले को कोर्ट के सामने पेश कर देती है । 

ऐसा कहा जाता है कि अपराध सिर्फ अपराध होता है,  और हर अपराध के लिए एक सजा होती है। कुछ अपराध ऐसे होते हैं जो कि जाने-अनजाने में हो जाते हैं।  ऐसे लोगों के लिए  कानून में क्या प्रावधान किया गया है? 


भारतीय दंड संहिता की धारा 76 के अनुसार - 

जब किसी व्यक्ति के द्वारा भूल की वजह से कोई अपराध घटित किया  जाता है,  तो ऐसा अपराध भारतीय दंड संहिता की धारा 76 के अंतर्गत इसे  अपराध नहीं माना जाता है ।


In case law of west Bengal  -

किसी अनजान व्यक्ति ने हमला कर दिया, इसके विरोध में पुलिस दल ने फायरिंग की जिससे एक व्यक्ति की मृत्यु हो गई,  इस मामले के तथ्यों को समझते हुए कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि पुलिस दल का काम बिल्कुल न्याय संगत था,  इसलिए आईपीसी की धारा 76 के अंतर्गत इसे अपराध नहीं माना जा सकता है । 

भारतीय दंड संहिता की धारा 79 के अनुसार - कानूनी तौर पर सही हो या फिर जाता है वह भारतीय दंड संहिता की धारा 79 के अंतर्गत अपराध नहीं माना जाता 

उदाहरणतया *

In case of orrisa -


इसमें दोनों एक समान दिखते है पर दोनों में बहुत अंतर है, इसलिए अपराध हो जाता है , परंतु इसे अपराध नहीं माना जाएगा क्योंकि  इसमें तथ्य की भूल पाई गई थी । 

इन दोनों धाराओं में तथ्यों के भूल को पाया  जाता है ,  ना कि कानून की भूल को । 

इसलिए हम कह सकते हैं कि तथ्यों की भूल के कारण किया गया अपराध क्षमा करने योग्य होता है यानी माफी के लायक हो सकता है।  पर कानून की भूल के कारण किया गया अपराध किसी भी स्तर पर क्षमा के योग्य नहीं होता है । 


कोई भी बालक या बालिका जिसकी आयु 7 साल से कम है वह किसी भी अपराध का दोषी नहीं माना जाएगा । क्योंकि उन बच्चों को अच्छे या बुरे की कोई परख नहीं होती है , बस उनको कोर्ट में इसी बात का प्रमाण देना होता है, कि उनकी उम्र 7 साल से कम है।  इसका प्रावधान भारतीय दंड संहिता 1860 में किया गया  है ।


उदाहरणतया -

बालक ने किसी व्यक्ति के परिसर में लकड़ी चुराई थी उसे पुलिस अभिरक्षा में रखा गया , लेकिन उसके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गई, क्योंकि उसकी आयु 7 साल से ज्यादा और 12 साल से कम थी,  वह बालक  इस धारा के अंतर्गत दोषी नहीं होगा। 

लेकिन उसके लिए कुछ शर्तों का होना जरूरी होगा- 

1.पहली शर्त यह कि वह दिमागी रूप से अकुशल होना चाहिए, जिसने अपराध किया है।

2.उसके बारे में उसे जानकारी भी नहीं होनी चाहिए ।

3.तीसरी बात यह कि अच्छे या  बुरे की उसे समझ ना हो।

 4.चौथी बात यह कि किसी के बहकावे में आकर अपराध कर रहा हो । 


उदाहरणतया - 

एक 9 साल के बालक ने ₹500 का हार चुरा कर उसे ढाई ₹100 में बेच दिया यहां पर बालक को हार की चोरी के लिए दंडित किया जा सकता है ,  क्योंकि उसको इसके बारे में पूरा ध्यान था । कि हार को चोरी करके उसे बेचना भी है । 

इसी तरह से 2 साल की लड़की को रास्ते में एक चांदी की पायल मिलती है , वह पायल अपनी मां को दे देती है। क्योंकि इनके द्वारा कोई अपराध नहीं किया गया है।


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