> '/> जानें भारत में सिविल केस दर्ज कराने कि प्रक्रिया क्या है? Know what is the procedure for filing a civil case in India? By sharimllb.

जानें भारत में सिविल केस दर्ज कराने कि प्रक्रिया क्या है? Know what is the procedure for filing a civil case in India? By sharimllb.

जानें भारत में सिविल केस दर्ज कराने कि प्रक्रिया क्या है? -

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जानें भारत में सिविल केस दर्ज कराने कि प्रक्रिया क्या है? -



 हम में से अधिकांश लोगो को कई बार आपसी विवादके निपटारे के लिये अदालत कि शरण मे जाना पडता है, जहाँ लम्बे समय तक अदालत के चक्कर काटने पडते है, इसके पीछे सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि अधिकांश लोग दालत कि कारवाही से वाकिफ नही है, अत: इस लेख मे एक अच्छे तरीके से उन सभी प्रक्रियाओ को विस्त्रत रूप से जाने गें| जिसके तहत एक आम भारतीय नागरिक अदालत मे सिविल केस दर्ज करवा सकता है

| भारत मे सिविल केस दर्ज कराने कि प्रक्रिया ‌-


 भारत मे सिविल केस दर्ज कराने की प्रक्रिया विस्त्रत रूप से निर्धारित है और यदि उस प्रक्रिया पालन नहि किया जाता है, तो रजिस्टार के पास केस को खारिज करने का अधिकार होता है, भारत मे सिविल केस दर्ज कराने प्रक्रिया निम्नलिखित है;

   मुकदमा / अभियोग दायर करना (Filling of plaint) -


 आम आदमी की भाषा में अभियोग का अर्थ “लिखित शिकायत” है जो व्यक्ति मुकदमा दर्ज करवाता है उसे “वादी” (Plaitiff) और जिसके खिलाफ केस दर्ज किया जाता है उसे “प्रतिवादी”(Defendant) कहा जाता है, वादी को अपना केस अधिनियम में निर्धारित समय सीमा के भीतर दर्ज कराना होता है अभीयोग की प्रति टाइप होनी चाहिये और उस पर न्यायालय का नाम, शिकायत की प्रक्रति, पक्छो के नाम और पता का स्पष्ट रूप से लिखा होना चाहिये,अभियोग मे वादी द्वारा एक शपथ-पत्र दिया जाना चाहिये जिसमे यह कहा गया होना चाहिये कि अभियोगम मे उल्लिखित सभी बाते सही है|
 

  वकालतनामा(Vakalatnama) –


 “वकालतनामा” एक ऐसा दस्तावेज है जिसके द्वारा कोई पार्ती अपनी और से किसी वकील को प्रतिनिधित्व करने को अधिक्रत करती है,

 वकालत नामा निम्नलिखित बातों का उल्लेख होता है,

 - 1. मुवकिल (client) किसी भी फैसले के लिये वकील को जिम्मेदार नही टहरायेगा,

 2. मुवकिल (client) अदालती कार्यवाहि का कुल खर्चा खुद ही देग,

 3. मुवकिल (client) जब तक वकील की फीस का भुगतान नही किया जाता है, तब तक उसे सभी दस्तावेज अपने पास रखने का अधिकार होग,

 4. मुवकिल (client) अदालती कार्यवाही के दौरान वकील को छोड सकता है

, 5. वकील को अदालत में सुनवाही के दौरान मुवकिल (client) हित में अपने दम पर निर्णय लेने का अधिकार होगा,

 वकालत नामा को अभियोग के प्रति के आखरी प्रष्ट के साथ जोडकर अदालत के रिकार्ड में रखा जाता है, इसके बाद पहली सुनवाही के लिये , वादी को एक तारीख दी जाती है, इस तारीख अदालत यह तय करता है कि कार्यवाही को आगे जारी रखना है या नही यदि वह निर्णय करता है कि इस मामले में कोई सच्चाई नही है तो वह ”प्रतिवादी” को बुलाये बिना ही के को खारिज कर देता है लेकिन यदि केस में अदालत को कोई सच्चाई नज़र आती है तो अदालत तो वह कार्यवाही को आगे जारी रखता है| 

   अदालती कार्यवाही की प्रक्रिया –


 सुनवाही के पहले दिन यदि अदालत को लगता है कि इस मामले मे सच्चाई है तो प्रतिवादी को एक निष्चित तारीख तक अपना बहस दर्ज कराने के लिये एक नोटिस भेजता है, प्रतिवादी को नोटिस भेजने से पहले वादी को कुछ आवशयक कार्य करने पड़ते जो निम्नलिखित हैं –

 1. अदालती कार्यवाही के लिये आवश्यक शुल्कका भुगतान |
 
  2. अदालत में प्रतिवादी के लिये अभियोग की 

2 प्रतियां जमा करना| सूचना का अदिकार (RTI) –


 लिखित व्यान (Written Stetement) –


 जब प्रतिवादी को नोटीस जारी किया जाता है तो उस नोटिस कि तारीख पर उपस्थित होना अनिवार्य है, ऐसी तारीख से पहले अपना लिखित व्यान प्रतिवादी को दर्ज कराना पड़ता है

 अन्य दस्तावेजों को जमा करना (Filling of other Documente) – 


 जब एक बार याचिका पूरी हो जाती है तो उसके बाद दोनो पार्टीयों को उन दस्तावेजों को जमा करने का अवसर दिया जाता है, जिन पर वे भरोसा करते है और जो उनके दावे को सिद्ध करने के लिये आवश्यक हैं, अंतिम सुनवाही के दौरान ऐसे किसी दस्तावेज को मान्य नही दिया जाता है, अदालत जिसे अदालतके सामने पहले पेश नही किया गया है|

 मुद्दो का निर्धारण (Farming of lssues) – 


इसके बाद अदालत द्वारा उन मुद्दो को तैयार किया जाता है, जिसके आधार पर बहस और गवाहो से पूंछ तांछ कि जाती है, अदालत द्वारा मुकदमे से जुड़े विवादो को देखते हुए मुद्दो को तैयारकिया जाता है और दोनो पार्टियो को मुद्दे के बाहर जाने कि अनूमती नही होती है, ये मुद्दे कानूनी हो सकते है | 

 अंतिम सुनवाही (final hearing) – 


अंतिम सुनवाही के लिये निर्धारित तिथि को दोनो पक्शो को सुनकर अंत में अदालत “अंतिम फैसला” सुनाता है|

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