इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति ने जेल अधीक्षक को अदालत में पेश होने का निर्देश दिया.-
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने जिला जेल अधीक्षक के आचरण को बुलाया जिन्होंने आवेदक विनोद बरुआ को रिहा करने से इनकार कर दिया क्योंकि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जमानत आदेश में उनका नाम कुमार गायक था लेकिन इसके अलावा भी बहुत न्यायमूर्ति जेल अधीक्षक को अदालत में पेश होने का निर्देश दिया.
और बताया कि उसके खिलाफ विभागीय जांच की सिफारिश की जाए मामला न्यायालय के समक्ष प्रार्थना की गई कि आवेदक का नाम जमानत अर्जी के कारण शीर्षक में दिखाया जाए और साथ ही दिनांक 4 सितंबर 2019 न्यायाधीश सिद्धार्थनगर द्वारा पारित किया गया 2019 के जमानत आवेदन संख्या 731 को विनोद कुमार बरुआ को सुधारा जा सकता है आवेदक के लिए वकील द्वारा प्रस्तुत किया गया था कि एचसी के आदेश के बावजूद उसे 9 अप्रैल 2020 दे दी गई थी आवेदक को जेल से रिहा नहीं किया गया था.
वास्तव में जेल अधिकारियों ने मामले में पारित रिहाई के आदेश का पालन करने से इनकार कर दिया क्योंकि रिहाई के आदेश में उल्लेखित नाम विनोद परिवार था जबकि मानसिक में उसका नाम विनोद कुमार बरवार है इस तकनीकी का पर जेल अधीक्षक जेलर ने आवेदक को रिहा करने से इनकार कर के उच्च न्यायालय के जमानत आदेश को रद्द कर दिया इन परिस्थितियों में आवेदक ने जज के लिए आवेदक के नाम में सुधार के लिए एक आवेदन किया जिसमें उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश के विपरीत नाम को सही करने से इंकार कर दिया कोर्स का अवलोकन जेल अधीक्षक जिला के आचरण पर फटकार लगाते हुए कोर्ट ने कहा यह न्यायालय हमारे आदेशों की सराहना नहीं करता है जो कि दोषपूर्ण है यह न्यायालय यह समझने में विफल रहता है कि जब आवेदक का नाम जमानत स्वीकृति आदेश में उल्लेखित है विनोद गुरुवार है तो जमानत में उल्लेखित नाम के साथ कुमार क्यों जोड़ा जाना चाहिए,
आदेश क्रम में इसे प्रभावशाली बनाने के लिए न्यायालय ने भी टिप्पणी की जेल अधिकारियों द्वारा बताई गई इस तरह की गलती की एक गंभीर सजा को आमंत्रित करना चाहिए जब तक कि आवेदक की पहचान के बारे में गंभीर संदेह या विवाद ना हो यह स्पष्ट रूप से यहां मामला नहीं है इसके अलावा अदालत ने कहा इन सभी आठ महीनों के लिए जमानत आदेशों का पालन नहीं करने का एकमात्र उद्देश्य प्राइमा से की है जो इस न्यायालय के आदेशों को पूरा करने में जेल प्रशासन का रवैया है.
उच्च न्यायालय द्वारा सुधार के आवेदन को खारिज कर दिया गया कि आवेदक विनोद नाम के साथ विशेष न्यायाधीश द्वारा समय के भीतर पारित होने के लिए एक रिहाई के आदेश के साथ जारी किया जाएगा 24 घंटे की अवधि रिहाई के आदेश का पालन करने के लिए निर्देशित किया गया था और आवेदक को उसके नाम के बिना कुमार की अनुपस्थिति पर कोई आपत्ति जताते हुए आवेदक को रिहा कर दिया सिद्धार्थनगर द्वारा अनुपालन का एक हलफनामा दायर किया गया था और वह व्यक्ति में भी दिखाई दिया उन्होंने इस न्यायालय के आदेश के अनुपालन के लिए स्पष्टीकरण प्रस्तुत किया उन्होंने अपने हलफनामे में कहा कि आवेदक को जेल से 8 दिसंबर 2020 को 12:22 बजे रिहा कर दिया गया है परिणाम में देरी को अनिच्छा से स्वीकार किया जेल अधीक्षक की व्यक्तिगत उपस्थिति को छूट दी गई थी उन्हें भविष्य में सावधान रहने के लिए चेतावनी दी गई थी.
Case का शीर्षक विनोद परिवार बनाम यूपी राज्य आपराधिक विविध जमानत आवेदन संख्या 2020 का 3837.
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