> '/> एफआईआर को महज इसलिए रद्द नहीं किया इलाहाबाद हाईकोर्ट*

एफआईआर को महज इसलिए रद्द नहीं किया इलाहाबाद हाईकोर्ट*

 *एफआईआर को महज इसलिए रद्द नहीं किया जा सकता, क्योंकि व्हाट्सएप पर महिला की नग्न तस्वीरें पोस्ट करने वाला आरोपी उसका पति हैः इलाहाबाद हाईकोर्ट*

एफआईआर को महज इसलिए रद्द नहीं किया  इलाहाबाद हाईकोर्ट*



इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह एक ऐसे व्यक्ति के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी(एफआईआर) को रद्द करने से इनकार कर दिया, जिस पर व्हाट्सएप पर अपनी पत्नी (शिकायतकर्ता) की नग्न तस्वीरें पोस्ट करने का आरोप है। 

न्यायमूर्ति पंकज नकवी और न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की खंडपीठ* ने आरोपी की तरफ से दायर आपराधिक विविध रिट याचिका को खारिज करते हुए कहा कि, 

आईटी अधिनियम की धारा 67* के तहत किए गए अपराध के संबंध में लगाए गए आरोप प्रथम दृष्टया बन रहे हैं क्योंकि विशेषतौर पर व्हाट्सएप पर शिकायतकर्ता की नग्न तस्वीरें डालने का आरोप लगाया गया हैं। ऐसे में,केवल इसलिए कि याचिकाकर्ता शिकायतकर्ता का पति है, प्राथमिकी को रद्द करने के लिए एक वैध आधार का गठन नहीं करता है।''


*मामला न्यायालय के समक्ष* 


याचिकाकर्ता ने एक याचिका दायर कर *आईपीसी की धारा 270, 313, 323, 376 डी, 34 और आईटी एक्ट की धारा 67* के तहत दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी। साथ ही यह भी मांग की गई थी कि प्रतिवादी को निर्देश दिया जाए कि वह जांच के दौरान याचिकाकर्ता को गिरफ्तार न करें। 


🟤याचिकाकर्ता (पति) ने प्रस्तुत किया कि प्रतिवादी नंबर 4 (शिकायतकर्ता/ पत्नी) ने झूठे और मनगढ़ंत आधारों के आधार पर याचिकाकर्ता (पति) के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करवाई है।

यह भी प्रस्तुत किया गया कि शिकायतकर्ता द्वारा लगाए गए सभी आरोप झूठे और मनगढ़ंत हैं और प्रतिवादी नंबर 4 (पत्नी) याचिकाकर्ता की पत्नी है, जो उससे छह साल बड़ी है और यह उसकी दूसरी शादी थी, लेकिन याचिकाकर्ता पर दबाव बनाने के लिए इन सभी पहलुओं की अनदेखी करते हुए उसने झूठे और मनगढ़ंत आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज करवाई है। हालांकि, याचिका में कहीं भी इसका उल्लेख नहीं किया गया था, लेकिन याचिकाकर्ता के वकील ने मौखिक रूप से कहा था कि याचिकाकर्ता से अनुचित वित्तीय लाभ लेने के विचार के साथ उपरोक्त प्राथमिकी दर्ज करवाई गई है।


*कोर्ट का आदेश*


प्राथमिकी को रद्द करने से इनकार करते हुए और अजीत सिंह उर्फ मुरहा बनाम यूपी राज्य (2006 (56) एसीसी 433) मामले में दिए गए के आदेश को ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने टिप्पणी करते हुए कहा कि*''जब तक कि संज्ञेय अपराध एफआईआर में शामिल आरोपों से पूर्व-निर्धारित नहीं होता है या एक मामले की जांच करने के लिए पुलिस की शक्ति पर कोई वैधानिक प्रतिबंध नहीं है, तब तक जांच में हस्तक्षेप करना या गिरफ्तारी पर रोक लगाना उचित नहीं है।''


*अंत में, कोर्ट ने कहा,* 


एफआईआर को देखने के बाद प्रथम दृष्टया यह नहीं कहा जा सकता है कि कोई संज्ञेय अपराध नहीं किया गया है। इसलिए, एफआईआर को रद्द करने या याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी पर रोक लगाने के लिए कोई आधार मौजूद नहीं है।'' 

संबंधित समाचार में, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने अक्टूबर 2020 में पब्लिक डोमेन में अपनी पत्नी की नग्न तस्वीरों को पोस्ट करने और अपलोड करने के आरोपी एक पति को अग्रिम जमानत का लाभ देने से इनकार किया था। 

न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर की खंडपीठ ने इसे 'न केवल गंभीर बल्कि एक जघन्य अपराध' करार देते हुए कहा था 

सार्वजनिक डोमेन में जीवनसाथी विशेषतौर पर पत्नी की नग्न तस्वीरों को पोस्ट करना और अपलोड करना, उस पारस्परिक विश्वास और भरोसा को तोड़ने के समान है जो कि वैवाहिक संबंधों को प्रभावित करता है।'


*केस का शीर्षक - धनंजय बनाम यूपी राज्य व 3 अन्य,आपराधिक विविध रिट याचिका संख्या -12809/2020*


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