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सुप्रीम कोर्ट ने घरेलू हिंसा अधिनियम के ऊपर बहुत ही अहम फैसला दिया है |
सुप्रीम कोर्ट ने घरेलू हिंसा अधिनियम के ऊपर बहुत ही अहम फैसला दिया है जिसके अंतर्गत उन्होंने यह कहा है कि अगर पत्नी चाहे तो पति के रिश्तेदारों से संबंधित घर में भी रहने का अधिकार प्राप्त कर सकती है यानी कि एक महिला को अपने सास-ससुर के मकान में भी रहने का अधिकार प्राप्त हो सकता है|
जानेंगे क्या था यह केस -
एक लेटेस्ट जजमेंट में घरेलू हिंसा कानून के प्रोबेशन के तहत एक महिला को अपने सास-ससुर के घर में आश्रय लेने के अधिकार के बारे में जानकारी दी उन्होंने कहा कि जब भी किसी महिला के साथ कोई घरेलू हिंसा होती है तो वह चाहे तो अपने सास-ससुर के घर में भी आश्रय पाने का अधिकार रहती है और कोई भी यह कहकर मना नहीं कर सकता इस आधार पर मना नहीं कर सकता कि आश्रय लेने के लिए आवेदन करते समय पत्नी अपने सास-ससुर के घर में रह रही थी या फिर नहीं रह रही थी
Suprem Court -
सुप्रीम कोर्ट ने इस बात को साफ कर दिया और कहा कि पति के किसी भी रिश्तेदार का मकान जिसने महिला कभी भी घर की तरह रही हो कानून के तहत उच्च शेयर हाउसहोल्ड माना जाएगा घरेलू हिंसा कानून 2005 के तहत महिला के बारे में बात किया जाए उसके अधिकारों के बारे में बात किया जाए इसके लिए कहती है कि किसी भी महिला को पति के कान होते हैं उसमें पाने का हक होता है |
Explain -
छह मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए अधिकारों को सीमित कर दिया था और उन्होंने अपने फैसले में कहा था कि जिस मकान में रह रही हो ना हो या फिर किराए का मकान उसी में महिला अपना आश्रय का दावा कर सकती है|
2006 Amatment -
2006 के इसी केस में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना था कि आश्रय लेने के लिए महिला का दावा पति पर बनता है उसके माता-पिता पर नहीं बनता लेकिन इस केस में यानी कि आज हम जिसके इसके बाद कर रहे हैं |
सतीश चंद्र अहूजा वर्सेस नेहा अयोध्या केस -
सतीश चंद्र अहूजा वर्सेस नेहा अयोध्या केस में सुप्रीम कोर्ट ने इस दावे को नकार दिया और कहा कि अगर महिला चाहे तो उसका ससुर के घर में भी आशय पाने के अधिकारी होगी चाहे इस केस में सुप्रीम कोर्ट के आगे थे जिनको विचार करना था तो यह था कि घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 में महिलाओं की सुरक्षा के लिए जो अधिकार बताए गए हैं इसके तहत की भाषा को किस तरह सकता है जहां पर रहता है या फिर जहां अपने पति के साथ रहती है जो निर्णय दिया था कि घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 में महिलाओं की सुरक्षा कानून भी नहीं है सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बारे में कहा कि भाषाओं में किया गया है होना चाहिए और जिसकी वजह से समाज में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि घटना में किसी भी रिश्तेदार सकता है के अधिकार का दावा करने की हकदार है|
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