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IPC की धारा 309 क्या है - IPC ki dhara 309 kya hai.

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  भारतीय दंड संहिता 1860 -


- IPC ki dhara 309 kya hai.


आईपीसी की धारा 309 -


अगर कोई व्यक्ति आत्महत्या करने की कोशिश करता है,  और उस अपराध को करने के लिए कोई कार्य करता है, या  कोई कदम उठाता है , परंतु वह आत्महत्या नहीं कर पाता है। तो ऐसा करने वाला  व्यक्ति  आईपीसी की धारा 309 के तहत अपराध करता है। 

सज़ा का प्रावधान -

भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 309 के अंतर्गत इस अपराध के लिए  कारावास की अवधि 1 साल तक हो सकेगी या फिर जुर्माना या फिर दोनों से दंडित किया जा सकता है। या फिर उस व्यक्ति को किसी भी प्रकार की सजा नहीं दी जाएगी ,  क्योंकि वह मर चुका होगा।अगर  उसकी मृत्यु नहीं होती तो वह आत्महत्या करने की कोशिश के लिए दंडित किया जाएगा । 

भारतीय दंड संहिता में यह एक ऐसा अपराध होता है , जिसे करना दंडनीय अपराध नहीं होता है । 

उदाहरणतया -

विमला एक गांव की औरत थी, उसकी उम्र 20 साल की थी, और उसका पति उसके साथ बहुत ज्यादा बुरा व्यवहार करता था , दोनों के बीच झगड़ा हुआ,  और उसके पति ने उसे पीटने की धमकी दी, उसी रात वह औरत अपने 6 महीने के बच्चे को लेकर घर से चुपचाप निकल गई ,अभी वह कुछ ही दूर गई थी । कि उसे लगने लगा कि कोई व्यक्ति उसके पीछे-पीछे आ रहा है , उसने पीछे मुड़कर देखा तो उसे लगा कि उसका पति ही उसका पीछा कर रहा है , वह घबरा गई और घबराहट में बच्चे के साथ पास के एक कुएं में कूद गई । जिससे बच्चे की मृत्यु हो गई,  मगर वह औरत आत्महत्या करने के लिए दंडनीय नहीं होगी। क्योंकि आत्महत्या करने की कोशिश करने के लिए कोई आशय और प्रयास होना जरूरी होता है । जबकि इस मामले में विमला अपना जीवन खत्म करने का नहीं सोच रही थी ।  बल्कि वह अपने पति से बचने की कोशिश कर रही थी । 


क्योंकि यहां  पर वह हत्या की कोटि में ना आने वाले अपराधिक मानव वध के लिए दंडनीय होगी ।  क्योंकि जिस समय वह अपने 6 महीने के बच्चे के साथ कुएं में कूदी थी, तब उसे इस बात का ज्ञान होना चाहिए था, 

: क्योंकि यहां  पर वह हत्या की कोटि में ना आने वाले अपराधिक मानव वध के लिए दंडनीय होगी ।  क्योंकि जिस समय वह अपने 6 महीने के बच्चे के साथ कुएं में कूदी थी, तब उसे इस बात का ज्ञान होना चाहिए था,  कि उसके द्वारा किया गया कार्य  कितना ज्यादा घातक हो सकता है। जिससे पानी में डूबने से बच्चे की मृत्यु होना भी संभव था। उसे इस बात का ज्ञान नहीं था।


किसी व्यक्ति के द्वारा आत्महत्या करने का निश्चय लेना -

उदाहरणतया - 

विश्वविद्यालय में एक  छात्र नेता ने आत्मदाह करने का ऐलान कर दिया । उसने कॉलेज के मुख्य द्वार पर सबको इकट्ठा किया, और अपने  पर मिट्टी का तेल डालकर आत्महत्या करने का प्रयास किया ,  जिसके लिए दोषी ठहराया गया ,परन्तु यह कार्य  आत्महत्या का प्रयास नहीं कहा जा सकता ।

क्योंकि उसने  अभी तक आग नहीं  लगाई थी। और आग लगाने से पहले वह अपना विचार बदल सकता था,  इसलिए इस हत्या के मामले में यह निर्धारित किया गया था।

कि भारतीय दंड संहिता की धारा 309 भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 का उल्लंघन नहीं करती है ।

यह कहना उचित नहीं होगा कि जीवन संबंधी अधिकार में जीवित ना रहने का अधिकार भी सम्मिलित है ।

 Case law -

Shripati Maruti durbal vs state of Maharashtra के मामले में बंबई हाईकोर्ट ने इसके खिलाफ अपना विचार व्यक्त किया था। 

इस मामले में यह निर्णय लिया गया कि धारा 309 भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21,  19 और 14 का उल्लंघन करती है।  बिना जीवन के अधिकार के आर्टिकल 19 का अधिकार बेकार है। यह 

अनुच्छेद 14 का भी उल्लंघन करती है। क्योंकि आत्महत्या की सभी प्रकार की कोशिशों को एक जैसा माना गया है । 

ऐसी कोशिश इन  परिस्थितियों के कारण की गई  थी ,उनको विचार में नहीं रखा गया है , मुंबई हाई कोर्ट का यह विचार तर्कसंगत नहीं था ।और इसकी  विद्वानों के द्वारा बहुत ज्यादा आलोचना की गई थी अति नाम वर्सेस भारत संघ के मामले में दो रिट याचिकाएं था और इसका विद्वानों के द्वारा बहुत ज्यादा आलोचना की गई थी। मुंबई हाई कोर्ट का यह विचार तर्कसंगत नहीं था, और इसका विद्वानों के द्वारा बहुत ज्यादा आलोचना की गई थी । 


• इमाम vs भारत संघ के मामले में दो (रिट) याचिकाएं जारी की गई थी । 

एक ,नागभूषण पटनायक के द्वारा दाखिल की गई थी

भारतीय दंड संहिता की धारा 309 की वैधानिकता को संविधान के आर्टिकल 14 और 21 के अतिक्रमण करने के आधार पर चुनौती दी गई थी, 


दूसरे , याची पटनायक ने अपने खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 309 के अंदर चल रही थी ।  जिसमें कार्यवाही को रद्द करने की प्रार्थना की थी।  

हाईकोर्ट ने कहा कि  ऐसे व्यक्ति को एक से  ज्यादा उसको दोबारा से दंडित करने जैसा है । क्योंकि उसने आत्महत्या की कोशिश की , और वह विफल हो गया। उसका स्टेट ऑफ माइंड क्या रहा होगा , और  ऐसा करना किसी धर्म नीति और लोकमत के खिलाफ नहीं कहा जा सकता और आत्महत्या करने की कोशिश के काम का समाज पर हानिकारक प्रभाव भी नहीं पढ़ना चाहिए।

Case law -

Ram kaur vs state of Punjab के केस में हाईकोर्ट ने तीरथ ईमाम वर्सेस भारत संघ के मामले में दिए गए , पहले के निर्णय को निरस्त कर दिया गया । 

भारतीय दंड संहिता की धारा 309 को असंवैधानिक नहीं बता�

 Case law -

Ram kaur vs state of Punjab के केस में हाईकोर्ट ने तीरथ ईमाम वर्सेस भारत संघ के मामले में दिए गए , पहले के निर्णय को निरस्त कर दिया गया । 

भारतीय दंड संहिता की धारा 309 को असंवैधानिक नहीं बताया और उन्होंने कहा कि यह धारा असंवैधानिक नहीं है । और इससे संविधान के आर्टिकल 14 और 21 के उप बंधुओं का किसी प्रकार से उल्लंघन नहीं होता । संविधान के आर्टिकल 21 में दिए गए जीवन के अधिकार में मरने का अधिकार शामिल नहीं है । और जीवन के संरक्षण में जीवन का समापन शामिल नहीं होता है। सभी को जीने का अधिकार दिया गया है, वहां पर किसी भी व्यक्ति को मरने का अधिकार नहीं दिया गया है ।  

भारतीय संविधान के आर्टिकल 21 में जीवन के अधिकार का  मतलब है , कि सभी व्यक्तियों का  सम्मान के साथ जीवन को समझाना। जीवन के सभी पहलुओं को सम्मानजनक बनाता हो। इसमें शामिल किया जा सकता है।

• लेकिन इसमें मरने के अधिकार को भी शामिल किया जा सकता है। जब कोई आत्महत्या करने की कोशिश करें तब क्या होगा ? 

कुछ  विवाहित अपनी पारिवारिक समस्याओं के कारण आत्महत्या करने का फैसला कर लेते हैं, जिसमें  पति जहर लेकर आता है , और दोनों पति - पत्नी  मिलकर उसे खा लेते हैं।  पति तो बच जाता है, लेकिन पत्नी की मृत्यु हो जाती है, पत्नी की मृत्यु जहर खाने से होती है। और पति आईपीसी की धारा 309 के अंतर्गत आत्महत्या की कोशिश के लिए दोषी पाया जाता है, और साथ में पत्नी को आत्महत्या करने में सहायता करने के लिए भी दोषी पाया जाता है।  जिसके लिए वह आईपीसी की धारा 309 के अंतर्गत दोषी होगा ।


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2 Comments

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    Advocate For Supreme Court of India

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