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लिंक के बिना साजिश की बात नहीं मानी जा सकती: सुप्रीम कोर्ट*

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लिंक के बिना साजिश की बात नहीं मानी जा सकती सुप्रीम कोर्ट



SECTION 120 -


*[आईपीसी की धारा 120 बी] असम्बद्ध तथ्यों या अलग-अलग स्थानों तथा समयों पर किये गये आचार-व्यवहार के तार्किक लिंक के बिना साजिश की बात नहीं मानी जा सकती: सुप्रीम कोर्ट*


⚫सुप्रीम कोर्ट ने एक आरोपी को जमानत पर रिहा करते हुए कहा है कि असम्बद्ध तथ्यों या अलग-अलग स्थानों तथा समयों पर किये गये आचार-व्यवहार के तार्किक लिंक के बिना साजिश की बात नहीं मानी जा सकती। 


🔵इस मामले में मोहन नामक अभियुक्त के खिलाफ आरोप था कि वह अपहरण की साजिश में शामिल था। अभियोजन पक्ष के अनुसार, याचिकाकर्ता मोहन ने एक अन्य अभियुक्त के अनुरोध पर सिम कार्ड खरीद कर दिया था। 


🔴दूसरे अभियुक्त ने उस सिम का इस्तेमाल अपहरण की घटना को अंजाम देने में किया था। ट्रायल कोर्ट ने मोहन को दोषी ठहराया था, जिसे उसने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता ने अनुरोध किया था कि ट्रायल कोर्ट द्वारा दोषी ठहराये जाने के खिलाफ याचिका के निपटारे तक सजा निलंबित की जाये और उसे जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया जाये। हाईकोर्ट ने भी उसकी याचिका ठुकरा दी थी।


🟢हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर करके अपीलकर्ता ने दलील दी थी कि इस बात का कोई पुख्ता साक्ष्य नहीं है कि उसे इस बात की जानकारी थी कि उस सिम कार्ड का इस्तेमाल बाद में अपहरण के लिए किया जाएगा या किये जाने की आशंका है। अपीलकर्ता के खिलाफ इसी आरोप के मद्देनजर ट्रायल चलाया गया था। 


🟣इस बिंदु पर *न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने कहा:* "सवाल यह है कि क्या अपहरण के गैर-कानूनी कार्य को अंजाम देने की साजिश में *अपीलकर्ता (मोहन) राजदार था। हम भारतीय दंड संहिता की धारा 120ए* की व्याख्या से अवगत हैं, लेकिन मौजूदा मामले के तथ्यों के आईने में, संबधित व्याख्या के कानूनी पहलुओं को साक्ष्यों के आलोक में जांच किये जाने की आवश्यकता है। 


🟤असम्बद्ध तथ्यों या अलग-अलग स्थानों तथा समयों पर किये गये आचार-व्यवहार के तार्किक लिंक के बिना 'साजिश' की बात नहीं मानी जा सकती।"


🟡बेंच ने उपरोक्त टिप्पणी करते हुए अपीलकर्ता को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया, बशर्ते वह ट्रायल कोर्ट द्वारा निर्धारित शर्तों पर अमल करे। धारा 120ए आपराधिक साजिश को परिभाषित करती है। इसमें कहा गया है : 


🟠जब दो या अधिक व्यक्ति निम्न करने पर सहमत होते हैं या उसका कारण बनते हैं, (1) गैर-कानूनी कार्य, या (2) गैर कानूनी तरीके से किया गया कार्य जो गैर-कानूनी न हो, ऐसी सहमति आपराधिक साजिश की श्रेणी में होती है, बशर्ते किसी अपराध की सहमति को छोड़कर कोई अन्य सहमति आपराधिक साजिश की श्रेणी में नहीं आयेगी, जब तक कि सहमति के अलावा कुछ कार्य एक या एक से अधिक पार्टियों द्वारा सहमति के अनुपालन के तहत नहीं किया जाता। 


➡️इस प्रावधान की व्याख्या में स्पष्ट होता है कि 'यह महत्वहीन है कि अवैध कार्य इस तरह के समझौते का अंतिम उद्देश्य है, या ऐसा केवल संयोगवश हुआ है।' 


*केस का नाम : मोहन बनाम मध्य प्रदेश सरकार*


*केस नं. : क्रिमिनल अपील नं. 630/2020*


*कोरम : न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना*


*वकील : एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड प्रताप सिंह, एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड गोपाल झा*


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